संदर्भ (Context) ही सत्ताधीश है |

नमस्ते ! मैं चाहता हूँ कि आप एक बहुत ही रोचक प्रयोग में भाग लें | इसकी शुरू करने के लिए दो अधूरे वाक्य हैं - (A) " सभी...हैं...| " और (B) " सभी...के पास...है | " सबसे पहले, आप दोनों वाक्यों/जुमलों की पहली ख़ाली जगहों (...) को किसी भी बहुवचन संज्ञा (Plural Nouns) से भर सकते हैं | उसके बाद, आप दोनों वाक्यों/जुमलों की दूसरी ख़ाली जगहों को विशेषण (A के लिए) और क्रिया (B के लिए) के साथ कुछ अतिरिक्त बहुवचन संज्ञाओं या विशेषणों से भर सकते हैं | मुझे पूरा विश्वास है कि आपके दिमाग में ख़ाली जगहों को भरने के लिए जरूर कुछ होगा जैसे कि " सभी लोगों के पास कार है |" बिलकुल इसी तरह, ख़ाली जगहों को आप की मनचाही संज्ञाएँ, क्रियाएँ और विशेषणों से भरने के लिए " लोग...हैं | ", " लोग हमेशा... | " या " हर कोई... है |" जैसे कई वाक्य/जुमले हैं |

इस तरह के बयानों को रचना या गढ़ना अति-सामान्यकरण (Over-generalisation) कहलाता है | यह किसी विशिष्ट संदर्भ के बिना, व्यापक धारणा गढ़ने का सबसे छोटा बौद्धिक रास्ता (Mental shortcut) है | अगर दूसरे शब्दों में कहें तो, यह एक बौद्धिक तोड़-मरोड़ है जो किसी धारणा या निष्कर्ष से आधारभूत संदर्भ या छिपी हुई जटिलता को बाहर कर देती है | निर्विवाद रूप से सच है की किसी भी घटना घटने या किसी के अस्तित्व में होने के पीछे की स्थिति, कारण, अवस्था, व्यवस्था, संयोजन, इतिहास, सापेक्षता, निर्भरता, सहसंबंध, अनुपात या परिस्थिति को पूरी तरह से समझने या उसका विश्लेषण करने के लिए समय, ऊर्जा, संयम और दूसरे लोगों द्वारा दिए गए जानकारी की भी आवश्यकता होती है |

अति-सामान्यकारक (Over-generalising) कथन, राय, दावे और हवाले निश्चित रूप से बातचीत को हल्का फुल्का, अनौपचारिक और सहज बनाए रखने में मदद करते हैं | हालाँकि, अगर लोग उन पर विश्वास करते हैं, तो वे कई गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकते हैं क्योंकि बहुत से लोग ऐसा करना पसंद करते हैं | अगर आप किसी क्षेत्र में एक विद्वान, विशेषज्ञ या अनुभवी व्यक्ति हैं तो आप अपने अति-सामान्यकारक कथनों, राय और दावों से लोगों को आसानी से बहका सकते हैं | आपकी विशेषज्ञता पर विश्वास करने वाले लोगों की धारणा, विचारों, नीतियों और/या निर्णयों को बहका सकते हैं या गुमराह कर सकते हैं और करते भी हैं |

संदर्भ: जिसके बारे में बहोत से लोग बात नहीं करते

अति-सामान्यकारकी कथन, राय, दावे और हवाले लगभग हर क्षेत्र में मौजूद हैं | दुर्भाग्य रूप से, कुछ बहोत सम्मानित और जिम्मेदार वैज्ञानिकों ने भी कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को अति-सामान्यकारी किया हो होगा | पृथ्वी के इतिहास में आज से लाखों वर्षों पहले की और आज की परिस्थितियाँ बेहद अलग होते हुए भी मैंने एक प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार विजेता को वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की जमावट को अति-सामान्यकारी करते हुए देखा है | उन्होंने अपने एक सरल समीकरण से जैविक परिस्थितियों को पूरी तरह से बाहर कर दिया | क्या यह पूरी तरह से विनाशकारी या विशेष रूप से - अवैज्ञानिक नहीं है ?

शारीरिक भाषा के क्षेत्र में अति-सामान्यकारक कथन, राय, दावे और हवाले पाठकों का ध्यान आकर्षित करते हैं | उनमें से कुछ ऐसे हैं - " बुनियादी भावनात्मक हावभाव दुनियाभर में एकजैसे ही हैं ", " 93% मानव संचार अशाब्दिक है ", " लोग दिन में...बार झूठ बोलते हैं " (आप इस ख़ाली जगह को आपके द्वारा सुने गए आंकड़े से भर सकते हैं ) | हाल ही में, मैंने एक लेख पढ़ा जिस में उल्लेख किया गया है कि एक विश्व विख्यात शारीरिक भाषा विशेषज्ञ ने एक सार्वजनिक दावा किया है, "सूक्ष्म-हावभाव (Micro-expressions) ऐसा कुछ होता नहीं है ! " | क्या उनमें में चेहरे के भी सूक्ष्म-हावभाव शामिल थे ?

केवल संदर्भ ही है जो शारीरिक भाषा के संकेतों को अर्थ देता है | अगर दूसरे शब्दों में कहें तो, अलग-अलग शारीरिक भाषा संकेतों का मिलाजुला अर्थ उनको जिस स्थिति या परिस्थिति में देखा, पहचाना या पकड़ा गया है उस स्थिति या परिस्थिति को समझने या उसका विश्लेषण करने के बाद ही सटीक रूप से ढूँढा या निकाला जा सकता है | शारीरिक भाषा संकेतों को संदर्भ से अलग नहीं किया जा सकता | शारीरिक भाषा में संदर्भ ही एक निर्विवाद, निर्विरोध और शाश्वत शासक (या सच्चा तानाशाह ) है | संदर्भ ही सत्ताधीश है |

संदर्भ को समझना: अलग अलग टुकड़ों को एक साथ मिलाना

स्थिति, अवस्था या परिस्थिति के साथ-साथ, शारीरिक भाषा संकेत देने वाले व्यक्ति की शारीरिक विशेषताएँ (या यदि कोई असामान्यताएं हो तो), सामाजिक-आर्थिक स्तर, भौगोलिक मूल, पेशा/व्यवसाय, व्यक्तित्व, चरित्र, वांशिकता, शिक्षा, इतिहास, संस्कृति, लिंग और आयु को संदर्भ के रूप में माना जा सकता है | हालाँकि, संदर्भ को इस से भी बहुत व्यापक और गहरे स्तर पर भी ले जाया जा सकता है |

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