नमस्ते मुद्रा: अर्थ, उद्देश्य, प्रारूप और योग के साथ संबंध

यूनाइटेड किंगडम के तत्कालीन राजकुमार (और वर्तमान राजा) चार्ल्स नमस्ते करते हुए

विश्वभर के कई देशों और संस्कृतियों में किसी का आमने-सामने अभिवादन करते समय उस व्यक्ति के सामने झुकना या अपने शरीर को थोड़ा झुकाना लगभग एक साधारण सी बात है | इस तरह के अभिवादन का एकमात्र उद्देश्य यही है की कुछ पलों के लिए अपनी ऊंचाई घटा कर दूसरे व्यक्ति के प्रति सम्मान दिखाना | कुछ धर्मों और संस्कृतियों में तो दोनों घुटनों को ज़मीन पर रखकर झुकने की या सीधे पेट के बल लेटकर (अधिक) सम्मान दर्शाने की प्रथा है |

हाथ मिलाने के विपरीत नमस्ते करना दो लोगों के बीच शारीरिक संपर्क से बचकर सम्मान दर्शाता है | इस प्रकार के अभिवादन से विषाणु का संक्रमण नहीं फैलता है | कोविड-19 (कोरोना) विषाणु महामारी के दौरान कई विदेशी नेताओं और राजनेताओं ने केवल इसी कारण नमस्ते मुद्रा को लगभग पूरी दुनिया में प्रचलित कर दिया | वास्तव में यह सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक बहुत ही सोच-समझकर उठाया गया कदम था |

भारतीय मूल के आयरलैंड के पूर्व प्रधान मंत्री लियो एरिक वराडकर
तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को नमस्ते मुद्रा सिखाते हुए

नमस्ते करना वास्तव में क्या सन्देश देता है ? नमस्ते करना असल में धार्मिक है या आध्यात्मिक ? क्या नमस्ते करते जिस तरह हुए दोनों हांथो को जोड़ा जाता है और योग करते हुए जिस तरहदोनों हांथो को जोड़ा जाता है जाता है, उन दोनों का अर्थ और उद्देश्य एक ही है ? तो आइए एक-एक करके इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने का प्रयास करते हैं |

1) नमस्ते मुद्रा का उद्देश्य: सबसे पहले आइए समझें कि ' नमस्ते ' का वास्तव में क्या अर्थ है | यह संस्कृत शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - ' नमः ' (उच्चारण ' नमह् ') और ' ते '। ' नमः ' शब्द का अर्थ है ' झुकना ' या 'प्रणाम करना' और ' ते ' का अर्थ है ' तुम ' या ' आप '। इसलिए सम्मान व्यक्त करते समय ' नमस्ते ' शब्द बोलने का सीधा सा अर्थ है " ( मैं ) तुम्हें/आपको नमन कर रहा / रही हूँ " या " ( मैं ) तुम्हें/आपको नमन करता / करती हूँ " | दरअसल, मुंह से ' नमस्ते ' बोलना अनिवार्य नहीं है क्योंकि यह मुद्रा शब्दों से ज्यादा सम्मान दर्शाती है |

नमस्ते मुद्रा तभी पूर्ण मानी जाती है जब व्यक्ति अपने दोनों हाथों की खुली हथेलियों को एक-दूसरे पर रखता है, हाथों को उसी मुद्रा में छाती, चेहरे या माथे के सामने रखता है और अपनी गर्दन को झुकाता है | सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नमस्ते मुद्रा में खड़े या बैठे व्यक्ति को अपने दोनों हाथों की सभी अंगुलियों को एक (या कई) व्यक्ति की ओर रखना पड़ता है जिसके लिए सम्मान व्यक्त किया जा रहा है |

2) नमस्ते मुद्रा का प्रारूप: ध्यान, योग और शास्त्रीय नृत्यों के संदर्भ में ' मुद्रा ' शब्द का अर्थ है " प्रतीकात्मक या अनुष्ठानिक शारीरिक मुद्रा या आसन " | कुछ मुद्राओं में केवल हाथों और/या हाथ की उंगलियों का उपयोग किया जाता है | मूल रूप से दोनों हाथों की खुली हथेलियों को एक-दूसरे पर रखना और उसी स्थिती में हाथों को अपने सामने रखना इसे प्राचीन भारतीय परंपरा में ' अंजलि मुद्रा ' कहा जाता है ' अंजलि ' शब्द का अर्थ है " अर्पण करना " या " आस्था दिखाना " | अंजलि मुद्रा का वर्णन प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है | इनमें से कुछ ग्रंथ 200 इसा पूर्व के हैं |

इटली के प्रधान मंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने G7 शिखर सम्मेलन के समय
जर्मन राष्ट्रपति ओलाफ स्कोल्ज़ को नमस्ते करते हुए

चूँकि नमस्ते मुद्रा का उपयोग कई सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण एशिया और एशिया के अन्य हिस्सों में अभिवादन के लिए रूप में व्यापक रूप से किया जाता रहा है नमस्ते मुद्रा का आविष्कार किसी विशेष धर्म द्वारा नहीं किया गया था या न ही यह किसी विशेष धर्म में निहित है | मूल रूप से ' नमस्ते ' शब्द का विस्तृत अर्थ है " मैं आपके भीतर की दिव्यता को नमन करता / करती हूँ " | इसलिए एक-दूसरे में दिव्यता को पहचानना और उसका सम्मान करना एक बहुत ही ऊँचे स्तर की विधी है | नमस्ते मुद्रा पूरी तरह से आध्यात्मिक है |.

प्राचीन भारतीय ग्रंथों में गहराई देखने पर अंजलि मुद्रा को ' हृदयांजलि मुद्रा ' के रूप में जाना जाता है जिसका अर्थ है " हृदय के लिए सम्मान " और इसे ' आत्मांजलि मुद्रा ' के रूप में भी जाना जाता है जो " आत्मा के लिए सम्मान " व्यक्त करती है | शायद एशिया की अन्य भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों में भी इस मुद्रा का यही अर्थ है |

3) योग के साथ संबंध: नमस्ते मुद्रा और योग में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली और समान दिखने वाली मुद्रा के बीच थोड़ा अंतर है | कुछ योगासनों में अभ्यासकर्ता अपनी छाती (या हृदय) की ओर इशारा करते हुए दोनों हाथों के अंगूठों को अन्य चार उंगलियों से समकोण ( 90 डिग्री ) पर रखता है | तो यह थोड़ी अलग मुद्रा या उंगली की स्थिति योग के संदर्भ में एक पूरी तरह से अलग स्थिति है | ( हो सकता है कि आप इसके बारे में पहली बार पढ़ रहे हों क्योंकि इस अंतर के बारे में ज़्यादा बात नहीं की गई है | )

A) नमस्ते मुद्रा और B) योग साधना मुद्रा में अंगूठे की स्थिति

नमस्ते मुद्रा के सम्मानजनक उद्देश्य के विपरीत कुछ योगासनों में एक दूसरी मुद्रा (B) का उपयोग बहुत अलग उद्देश्य के लिए किया जाता है | योग अभ्यास करते समय यह विशेष मुद्रा या अंगूठे की स्थिति बहुत फायदेमंद मानी जाती है | इसके कई फायदों में से एक मुख्य फायदा यह है कि यह मानसिक तनाव और चिंता से मुक्ति दिलाने में मदद करती है | इसलिए मन को एकाग्र करने और ध्यान की स्थिति तक पहुंचने के लिए जानबूझकर इसका उपयोग किया जाता है |

[#विशेष जानकारी: भारत की 1,500 वर्ष से भी अधिक पुरानी योग परंपरा की तरह मिस्र में भी एक अलग योग परंपरा है | इसे केमेटिक योग ( Kemetic Yoga ) कहा जाता है जिसे 1970 के दशक में असर हापी (Asar Hapi) और यर्सर रा होटेप (Yerser Ra Hotep) द्वारा विकसित किया गया था | उन दोनों ने प्राचीन मिस्र के चित्रलिपि में दर्शाए गए विभिन्न मुद्राएं और आसनों से प्रेरणा लेकर केमेटिक योग विकसित किया |]

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